रुद्राक्ष की पौराणिक ग्रन्थों में मिलती प्राचीन कथा


रुद्राक्ष की पौराणिक ग्रन्थों में मिलती प्राचीन कथा:

भगवान रुद्र को आँखों से टपके आँसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति होने के कारण ही रुद्राक्ष को साक्षात्‌ शिव स्वरूप ही माना जाता है। पुराणों की ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने वाला साक्षात्‌ रुद्र को ही धारण करता है। रुद्राक्ष का महात्म्य अति अद्भुत और आश्चर्यजनक है । रुद्राक्ष धारण करने वाला या उसकी पूजा करने वाला शिव सायुज्य मुक्ति को प्राप्त करता है। इस विषय में अनेक प्राचीन कथायें पुराणों में वर्णित हैं। इसी क्रम में यहाँ एक प्राचीन कथा का उल्लेख किया जा रहा है।

किसी समय केरल प्रदेश के एक ग्राम में सभी शास्त्रों का ज्ञाता देवदत्त नामक एक विद्वान्‌ ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण वेद-वेदांगों के तत्वों में पारंगत था। देवदत्त धर्मशास्त्रों में पारंगत, सर्वज्ञ, सर्ववेत्ता पण्डित था और श्रौत विधान व स्मार्त विधान के कर्मकाण्डों में लगा रहता था।

कुछ समय पश्चात्‌ दैवयोग से कुसंगति के कारण देवदत्त नामक उस ब्राह्मण की मति विपरीत हो गयी और वह पापयुक्त- कर्म करने लगा। उन पापकर्मों को करने से वह नीच ब्राह्मण कहलाने लगा। देवदत्त दूसरों को लूटने लगा, पर-स्त्रियों में लम्पट रहने लगा। इसी प्रकार जुआ खेलना, चोरी करना, वेश्याओं के साथ रमण करना, शराब पीना, मांस भक्षण करना आदि जितने भी बुरे कर्म हैं, वह उन्हीं में रत रहने लगा। देवदत्त पाप बुद्धि वाले धूर्त पापियों के साथ मिलकर ग्रामवासियों को तरह-तरह से सताने लगा।

देवदत्त के पाप-कर्मों से परेशान होकर एक दिन सभी ग्रामवासियों तथा ब्राह्मण वर्ग ने सलाह की कि क्‍यों न उसे गाँव से ही निकाल दिया जाये । इस प्रकार देवदत्त को मार-पीटकर ग्रामवासियों ने ग्राम से निकाल दिया। उस गाँव से निकाले जाने पर देवदत्त एक अन्य गाँव में पहुँचा, किन्तु वहाँ भी वह अपने पाप-कर्मों से बाज नहीं आया। उस दूसरे गाँव के लोग भी कुछ ही समय में उसके पाप-कर्मों और अत्याचार से तंग हो गये, फलस्वरूप उस ग्राम के निवासियों ने भी देवदत्त को अपने ग्राम से भगा दिया। इस प्रकार, अन्य किसी भी ग्राम में जब देवदत्त को शरण नहीं मिली तो अन्त में वह जंगल में जाकर रहने लगा।

जंगल में रहते हुये भी देवदत्त की पापवृत्तियों में कोई कमी नहीं आई। जंगल में भी वह निरीह पशु-पक्षियों को मारकर उनसे अपनी क्षुधा शान्त करता रहा। इस प्रकार, काफी समय तक वह एक जंगल से दूसरे जंगल में भटकता फिरा। उसी समय उस पापिष्ट, दुरात्मा, दुराचारी, दुष्ट देवदत्त का मृत्यु का समय आ गया । देवदत्त किसी निर्जन बन में विचरण कर रहा था कि एक स्थान पर मूर्च्छित होर गिर पड़ा और वहीं पर मर गया।

मृत्यु-मूर्च्छा से पीड़ित, मृत्यु को प्राप्त देवदत्त को यमपुरी ले जाने के लिये यमराज के दूत आ जन और यमपाश उसके गले में बाँधकर उसे घसीटते हुये यमपुर की ओर ले जाने लगे, किन्तु जिस भूमि पर गिर कर देवदत्त की मृत्यु हुई थी वहाँ संयोग से रुद्राक्ष का एक दाना दबा हुआ था, अतः मृत्यु से पूर्व रुद्राक्ष का वह दाना उसके सिर से स्पर्श हो गया था, अतः मृत्यु के समय रयुद्राक्ष स्पर्श करने से देवदत्त को शिवलोक कैलाश में उपस्थित करने की आज्ञा शिवदूतों को शंकर जी ने दी। कैलाश से आये शिवदूतों ने रास्ते में यमदूतों द्वारा देवदत्त को पाश में बाँधकर घसीटते हुये और कोड़ों से पीटते हुये यमपुर की ओर ले जाते हुये देखा। इस पर यमदूतों और शिवदूतों में परस्पर विवाद छिड़ गया। यमदूतों और शिवदूतों में आपस में युद्ध हुआ। यमदूत घबराकर भाग गये । अन्त में शिवदूत देवदत्त को छुड़ाकर, उसके गले से पाश खोलकर, उसे दिव्यरूपधारी बनाकर, वस्र और गहनों से अलंकृत करके, दिव्य-विमान में बैठाकर शिवलोक ले गये और वहाँ पहुँचने पर उसे शिव सानिध्य प्राप्त हुआ। इस प्रकार रुद्राक्ष इस तरह से प्रभावशाली तथा साक्षात्‌ शिवस्वरूप होते हैं।

रुद्राक्ष के महत्त्व एवं महात्म्य को प्रदर्शित करने वाली इसी प्रकार की अन्य कथायें भी पौराणिक ग्रन्थों में मिलती हैं, किन्तु उपर्युक्त कथा पढ़कर यदि कोई इसका निष्कर्ष यह निकाले कि जीवन भर पाप-कर्मों में लिप्त रहा जाये और अन्तिम समय में रुद्राक्ष माला या रुद्राक्ष का दाना गले में डाल लिया जाये अथवा रुद्राक्ष माला धारण किये रहो और पाप-कर्मो में लिप्त रहो, अन्त में रुद्राक्ष के पुण्य-प्रभाव से मोक्ष प्राप्ति हो ही जानी है, तो यह उनकी भूल होगी । रुद्राक्ष मुक्ति में तभी सहायक हो सकता है, जब हम रुद्राक्ष धारण करने के साथ हीं साथ नित्य-जीवन में आचरण एवं अपने कर्मों की ओर भी ध्यान दें। जब हम सदाचरण, सत्यकर्म अपनायें, शिव-पूजन में श्रद्धापूर्वक मन लगायें, दुष्कर्मों को यत्नपूर्वक जीवन से निकालने का प्रयत्न करें तभी की रुद्राक्ष धारण करने से कुछ लाभ सम्भव हो सकता है।

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